बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो लंबे समय से राज्य की सत्ता पर काबिज हैं, इस बार एक कठिन चुनावी मैदान का सामना कर रहे हैं। उनके सामने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) एक मजबूत दावेदार के रूप में खड़ी है, वहीं चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर भी एक नई चुनौती पेश कर रहे हैं।
इस चुनाव को बिहार के ‘स्थिर’ नेतृत्व (नीतीश कुमार) और ‘युवा’ चुनौती (तेजस्वी यादव) के बीच का मुकाबला माना जा रहा है। नीतीश कुमार अपनी विकासवादी नीतियों और शासन के अनुभव के दम पर चुनाव में उतर रहे हैं, जबकि राजद बेरोजगारी, नौकरियों और सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर युवाओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है।
प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ पदयात्रा ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उनका दावा है कि बिहार को एक नई राजनीतिक दिशा की जरूरत है जो पारंपरिक जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर काम करे। उनके समर्थकों का मानना है कि वे बिहार की राजनीति में एक ‘डिसरप्टर’ (बाधा उत्पन्न करने वाला) की भूमिका निभा सकते हैं, जिससे दोनों प्रमुख गठबंधनों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) और बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के कारण चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि, उनके पास अभी भी मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है, जो उनके शासन और स्थिरता पर भरोसा करता है। दूसरी ओर, राजद युवाओं के बीच लोकप्रिय है और प्रशांत किशोर के आंदोलन से पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना है। चुनाव आयोग की टीम भी राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की तैयारियों का जायजा लेने के लिए पटना का दौरा कर चुकी है, जिससे यह साफ है कि चुनाव की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी।