बस्तर/जगदलपुर, छत्तीसगढ़।
धान और पारंपरिक फसलों के लिए पहचाने जाने वाले बस्तर संभाग में अब एक किसान ने हाई-वैल्यू वाली व्यावसायिक खेती की ओर एक नया कदम बढ़ाया है। पहली बार, बस्तर के एक प्रगतिशील किसान ने सफेद चंदन (White Sandalwood) की खेती शुरू कर दी है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग और कीमत है। इस पहल ने न सिर्फ अपनी खेती को एक नया आयाम दिया है, बल्कि वे अब आसपास के अन्य किसानों को भी चंदन के पौधे उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में यह मुनाफे वाली खेती फैल सके।
पारंपरिक खेती से हटकर बड़ा मुनाफा
चंदन की खेती को सोने की खेती भी कहा जाता है, क्योंकि इसका पेड़ 12 से 15 वर्षों में तैयार होता है और एक अनुमान के मुताबिक प्रति एकड़ करोड़ों रुपये तक की कमाई दे सकता है। बस्तर के किसान ने इस भविष्य की संभावना को पहचानते हुए अपनी खेती की कुछ जमीन पर प्रयोग के तौर पर चंदन के पौधे रोपे। शुरुआती सफलता मिलने के बाद उन्होंने इसे बड़े स्तर पर अपनाने का फैसला किया।
चंदन की खेती की खासियत: सफेद चंदन का पेड़ एक अर्ध-परजीवी (Semi-Parasitic) पौधा होता है, जिसे जीवित रहने और बढ़ने के लिए पास में एक मेजबान पौधे (Host Plant) की आवश्यकता होती है। किसान ने चंदन के पौधों के साथ ही आँवला, नींबू, या नीम जैसे पौधे लगाए हैं, ताकि चंदन को शुरुआती वर्षों में पोषण मिलता रहे। यह जलवायु और मिट्टी बस्तर की परिस्थितियों के अनुकूल पाई गई है।
अन्य किसानों को प्रेरणा
किसान की यह पहल बस्तर क्षेत्र के लिए एक मिसाल बन गई है। पारंपरिक फसलों में घटते मुनाफे और जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के बीच, चंदन की खेती एक सुरक्षित और भारी रिटर्न वाला विकल्प है।
प्रगतिशील किसान अब अपने अनुभव और संसाधनों का उपयोग करते हुए, आस-पास के इच्छुक किसानों को भी चंदन के पौधे उपलब्ध करा रहे हैं। उनकी बाड़ियों और छोटे खेतों में भी प्रायोगिक तौर पर चंदन के पौधे रोपे जा रहे हैं, ताकि कुछ वर्षों बाद इसका सामूहिक परिणाम सामने आ सके। इस पहल से स्थानीय किसानों को यह भरोसा मिला है कि गैर-पारंपरिक और नकदी फसलें भी बस्तर की मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।
जिला कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी किसान की इस पहल का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि यह खेती बस्तर के किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक होगी।