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5 साल बाद फिर खुलेगा भारत-चीन के बीच व्यापार का दरवाजा, SCO समिट से पहले शुरू हो सकता है कारोबार

5 साल बाद फिर खुलेगा भारत-चीन के बीच व्यापार का दरवाजा, SCO समिट से पहले शुरू हो सकता है कारोबार

नई दिल्ली, 14 अगस्त: पांच साल के लंबे अंतराल के बाद, भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर व्यापार फिर से शुरू होने की संभावना बढ़ गई है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देश सीमा पर व्यापारिक बिंदुओं को फिर से खोलने पर विचार कर रहे हैं, ताकि स्थानीय उत्पादों का आदान-प्रदान हो सके। यह कदम शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट से पहले उठाया जा सकता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा ले सकते हैं।

यह व्यापारिक संबंध 2017-18 में 3.16 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, लेकिन कोविड-19 महामारी और गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। अब चीन के विदेश मंत्रालय ने इस मसले पर भारत के साथ संवाद और समन्वय बढ़ाने की इच्छा जताई है, हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।

क्या होता था व्यापार?

पिछले तीन दशकों में, भारत और चीन के बीच मसालों, कालीनों, लकड़ी के फर्नीचर, पशुओं के चारे, मिट्टी के बर्तनों, औषधीय पौधों, इलेक्ट्रिक सामान और ऊन जैसे स्थानीय उत्पादों का कारोबार होता था। यह व्यापार 3,488 किलोमीटर लंबी हिमालयी सीमा पर स्थित तीन तय बिंदुओं के जरिए होता था। इन बिंदुओं पर दोनों देशों के स्थानीय व्यापारी एक-दूसरे से मिलते थे और सामान का आदान-प्रदान करते थे।

संबंधों में सुधार के संकेत

दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के कई संकेत मिल रहे हैं। अगले महीने दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो सकती हैं। साथ ही, बीजिंग ने भारत के लिए कुछ उर्वरक निर्यात पर लगी पाबंदियां भी हटा दी हैं। इन सकारात्मक कदमों से यह उम्मीद जगी है कि सीमा पर व्यापारिक गतिविधियां फिर से शुरू होंगी।

SCO समिट में हो सकती है मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त में सात साल बाद पहली बार चीन की यात्रा पर जा सकते हैं, जहां वे SCO समिट में हिस्सा लेंगे। इस दौरान उनकी मुलाकात राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हो सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुलाकात दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। सीमा व्यापार की बहाली न केवल एक आर्थिक पहल है, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश भी है जो यह दर्शाता है कि दोनों देश मतभेदों के बावजूद सहयोग के रास्ते तलाश रहे हैं। यह कदम दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और शांतिपूर्ण माहौल बनाने में मददगार साबित हो सकता है।

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