
रायपुर, छत्तीसगढ़। राजधानी के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सुविधा माने जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल, आजकल अपनी चरमराती व्यवस्थाओं के कारण सुर्खियों में है। यहाँ मरीजों को आवश्यक सर्जरी और गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए पंद्रह से बीस दिनों या उससे भी अधिक समय तक का लंबा इंतज़ार करना पड़ रहा है, जिससे उनकी पीड़ा और भी बढ़ गई है। इस गंभीर अव्यवस्था पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा था, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार इस मामले में कोई ठोस जवाब पेश नहीं कर पाई।
मीडिया रिपोर्ट्स ने लगातार अस्पताल में व्याप्त इन अव्यवस्थाओं को उजागर किया था। तस्वीरों और कहानियों के माध्यम से यह सामने आया कि हड्डी टूटने, दुर्घटना में गंभीर फ्रैक्चर, और यहाँ तक कि कैंसर जैसे जानलेवा रोगों से जूझ रहे मरीज़ भी आवश्यक शल्य क्रियाओं के लिए महीनों तक की प्रतीक्षा सूची में शामिल हैं। ऐसे में मरीजों और उनके परिजनों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है। इस मानवीय संकट को देखते हुए, उच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता को समझते हुए संबंधित सचिव से विस्तृत रिपोर्ट और स्पष्टीकरण तलब किया था।
मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा की पीठ के समक्ष जब यह संवेदनशील मामला सुनवाई के लिए आया, तो सरकारी पक्ष की ओर से महाधिवक्ता ने न्यायालय से जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की। न्यायालय ने इस अनुरोध को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन यह स्थिति स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली पर गंभीर सवाल उठाती है और दर्शाती है कि आम जनता को मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी किस तरह संघर्ष करना पड़ रहा है।
इस मामले ने जनता के बीच भी गहरी चिंता पैदा कर दी है। मरीजों और उनके परिजनों को उम्मीद है कि उच्च न्यायालय की इस सक्रियता से अस्पताल प्रशासन और सरकार पर दबाव पड़ेगा, जिससे लंबी प्रतीक्षा सूचियों को कम किया जाएगा और बेहतर तथा त्वरित उपचार सुनिश्चित किया जाएगा। अब सबकी निगाहें अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जब राज्य सरकार को न्यायालय के समक्ष इन गंभीर मुद्दों पर एक स्पष्ट और संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करना होगा।