बालोद में बेटियों ने निभाया बेटे का फर्ज, पिता के अंतिम संस्कार में पेश की मिसाल
बालोद की दो बेटियों ने अपने पिता का अंतिम संस्कार कर समाज में नई मिसाल पेश की। जय श्रीवास्तव की बेटियां पूजा और अर्चना ने अर्थी को कंधा देकर ताँदुला मुक्तिधाम में मुखाग्नि दी।
बालोद। समाज में बेटियों के प्रति बदलती सोच और समानता की मिसाल बालोद जिले में देखने को मिली, जहां दो बेटियों ने अपने पिता जय श्रीवास्तव का अंतिम संस्कार कर बेटे का फर्ज निभाया। बूढ़ा तालाब मार्ग निवासी जय श्रीवास्तव (65) का रविवार को बीमारी के चलते निधन हो गया। उनके परिवार में केवल दो बेटियां, पूजा और अर्चना श्रीवास्तव हैं।
परंपराओं को तोड़कर निभाया फर्ज
समाज की पारंपरिक सोच के उलट, बेटियों ने न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि ताँदुला मुक्तिधाम में मुखाग्नि देकर सभी अंतिम संस्कार की रस्में पूरी की। इस मौके पर उपस्थित लोगों की आंखें नम हो गईं।
पूजा और अर्चना ने समाज को यह संदेश दिया कि बेटियां भी बेटे से कम नहीं हैं और हर जिम्मेदारी निभा सकती हैं। उनकी इस पहल को देखकर वहां मौजूद लोग भावुक हो गए और समाज में बदलाव की सराहना की।
पिता के बिना छोड़ी यादें
जय श्रीवास्तव के निधन से बेटियां गहरे शोक में थीं। उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए भावुक होकर कहा कि उन्होंने बेटे की कमी को महसूस नहीं होने दिया और पिता की अंतिम यात्रा को अपने कंधों पर पूरा किया।
लड़कियों की बढ़ती भूमिका और सोच का बदलाव
यह घटना समाज में बेटियों की बढ़ती भूमिका और उनके प्रति बदलते नजरिए की मिसाल है।
- बेटियों ने दिखा दिया कि वे हर वो काम कर सकती हैं, जिसे पहले केवल बेटों का हक माना जाता था।
- इस कदम ने समाज में एक नई सोच को जन्म दिया है कि जिम्मेदारी निभाने के लिए बेटा होना जरूरी नहीं।