दुर्ग जिले में किसानों के साथ दोहरा मापदंड, करोड़ों की हेराफेरी का आरोप

भिलाई। दुर्ग जिले में भारत माला प्रोजेक्ट के तहत भूमि अधिग्रहण मुआवजे में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई है। करीब 200 किसानों के मुआवजे के निर्धारण में स्थानीय प्रशासन पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लग रहा है। वर्ष 2022 में मुआवजा वर्गफुट के हिसाब से दिया गया, लेकिन अब 2024 में हेक्टेयर दर के आधार पर भुगतान किया जा रहा है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
मुआवजा घोटाले का पूरा खेल
- वर्ष 2017-18 में थनौद से उतई तक के किसानों की जमीन भारत माला प्रोजेक्ट के लिए अर्जित की गई।
- वर्ष 2019 में चुनिंदा किसानों को 500 वर्गफुट से कम भूमि पर चार गुना दर से मुआवजा दिया गया।
- अधिकारियों ने तर्क दिया कि इनकी भूमि का नक्शा बटांकन हो चुका था।
- बाद में, 2022 में अन्य किसानों को वर्गफुट के आधार पर मुआवजा दिया गया।
- 2024 में अचानक नियम बदले गए और बाकी किसानों को हेक्टेयर दर से दो गुना अंक पर भुगतान कर दिया गया।
- इससे एक ही साइज की जमीन के लिए किसी किसान को लाखों तो किसी को हजारों रुपए ही मिले।
200 करोड़ की संदेहास्पद राशि, हाईकोर्ट पहुंचा मामला
इस गड़बड़ी से लगभग 200 करोड़ रुपये के भुगतान पर संदेह खड़ा हो गया है। प्रभावित किसान हाईकोर्ट और स्थानीय राजस्व अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। आरोप है कि अधिकारियों ने अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार के मुआवजा नियमों में मनमाने बदलाव किए और करोड़ों रुपये का फर्जी भुगतान कर दिया।
कांग्रेस सरकार के दौरान 30% रजिस्ट्री छूट में हुआ घोटाला
- छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान रजिस्ट्री पर 30% की छूट दी गई थी।
- इसी छूट का फायदा उठाकर कई किसानों को अलग-अलग दरों पर मुआवजा दिया गया।
- जिन किसानों की भूमि का नक्शा बटांकन नहीं हुआ था, उन्हें हेक्टेयर दर से कम भुगतान किया गया।
- इस घोटाले में प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है।
किसानों को हो रहा भारी नुकसान
“एक ही तरह की जमीन के लिए किसी को लाखों और किसी को हजार रुपये का भुगतान हो रहा है। प्रशासन ने खुद नियम बदले और किसानों के साथ अन्याय किया।” – प्रभावित किसान
क्या होगी अगली कार्रवाई?
- हाईकोर्ट में केस दर्ज होने से जांच के आदेश संभव।
- प्रशासन पर जवाबदेही बढ़ेगी, मुआवजा पुनः निर्धारण की मांग उठ सकती है।
- केंद्र सरकार और राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग।