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सैकड़ों ट्रस्टों की हजारों एकड़ खेती पर धान खरीदी का विवाद गहराया

धान खरीदी के नियमों को लेकर सरकार और ट्रस्टों के बीच खींचतान

रायपुर। छत्तीसगढ़ में धार्मिक, शैक्षणिक, और चेरिटेबल ट्रस्टों द्वारा उनकी जमीनों पर उगाए गए धान की खरीदी को लेकर वर्षों से विवाद जारी है। राज्य और केंद्र सरकार के नियमों के तहत केवल पंजीकृत किसानों से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान खरीदा जाता है। यही नियम ट्रस्टों की जमीनों पर भी लागू किया गया है। हालांकि, ट्रस्ट संचालक इस नियम में बदलाव की मांग कर रहे हैं।

धान खरीदी पर ट्रस्टों का पक्ष

दूधाधारी मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख महंत डॉ. रामसुंदर दास ने कहा कि ट्रस्ट की जमीनों पर उगाए गए धान की खरीदी की मांग वे 2016 से कर रहे हैं। लेकिन, सरकार हर बार यह तर्क देकर मांग को खारिज कर देती है कि धान खरीदी केवल व्यक्तिगत किसानों के लिए है, न कि संस्थाओं के लिए।

क्या कहती है सरकार?

मार्कफेड के एमडी रमेश शर्मा के अनुसार, “एमएसपी पर धान खरीदी केवल किसानों से की जाती है। ट्रस्टों की जमीन पर उगाए गए धान को तभी खरीदा जाता है, जब वह जमीन किसी व्यक्ति को अधिया या रेगहा पर दी गई हो। ऐसे मामलों में किसान का पंजीयन कर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदा जाता है। हालांकि, इन किसानों को केवल 2300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाता है, न कि 3100 रुपये की पूरी कीमत।”

विवाद की जड़: केंद्र के नियम और राज्य सरकार का रुख

2016 में तत्कालीन रमन सरकार ने केंद्र सरकार के नियमों का हवाला देते हुए ट्रस्टों से धान खरीदी पर रोक लगा दी थी। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी यही नीति जारी रही। अब मौजूदा सरकार के समय में ट्रस्टों की ओर से फिर से यह मांग उठाई जा रही है कि उनकी जमीनों पर उगाए गए धान की खरीदी की जाए।

ट्रस्टों का क्या है विकल्प?

सरकार के नियम के अनुसार, ट्रस्टों की जमीन पर खेती करने वाले अधिया या रेगहा किसानों का पंजीयन किया जा सकता है। इन किसानों से ही धान खरीदी का प्रावधान है। हालांकि, इस व्यवस्था के तहत ट्रस्टों को एमएसपी का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

ट्रस्टों की धान खरीदी पर क्यों है विवाद?

  1. नियमों की कठोरता: केंद्र और राज्य सरकार के नियम केवल व्यक्तिगत किसानों को प्राथमिकता देते हैं।
  2. ट्रस्टों की मांग: ट्रस्ट अपने उगाए गए धान की खरीदी चाहते हैं।
  3. न्याय की बात: ट्रस्टों का कहना है कि उनकी जमीनों पर उगाए गए धान का भी किसानों जैसा ही हक है।

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