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बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की गुमशुदगी, पुलिस ने शुरू की जांच

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में कार्यरत पत्रकार मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी से लापता हो गए हैं। उनके मोबाइल नंबर भी लगातार बंद आ रहे हैं

बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में कार्यरत पत्रकार मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी से लापता हो गए हैं। उनके मोबाइल नंबर भी लगातार बंद आ रहे हैं, जिससे उनकी गुमशुदगी की चिंता बढ़ गई है। उनके बड़े भाई युकेश चंद्राकर ने बीजापुर थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके बाद बीजापुर एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की है।

पुलिस टीम द्वारा जांच शुरू

बीजापुर एएसपी युगलैंडन यार्क और कोतवाली टीआई दुर्गेश शर्मा के नेतृत्व में पुलिस अधिकारियों की एक टीम इस मामले की जांच में जुटी है। बस्तर आईजी पी. सुंदरराज ने सोशल मीडिया पर प्रेस नोट जारी कर कहा कि पुलिस मुकेश चंद्राकर की जल्दी से जल्दी पहचान करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि मुकेश चंद्राकर को जल्द ही ढूंढ लिया जाएगा।

भाई ने ठेकेदार से जुड़ी आशंका जताई

मुकेश चंद्राकर के बड़े भाई युकेश चंद्राकर ने कहा कि उन्हें संदेह है कि बीजापुर जिले के मिरतुर इलाके में हाल ही में किए गए सड़क निर्माण की स्टोरी से जुड़ा कोई ठेकेदार उनके गायब होने के पीछे हो सकता है। मुकेश ने अपनी रिपोर्ट में उस सड़क निर्माण से जुड़े भ्रष्टाचार की तरफ ध्यान आकर्षित किया था, जिसके बाद सरकार ने जांच शुरू की थी और कार्यवाही भी की थी। युकेश चंद्राकर ने पुलिस से इस एंगल पर भी मामले की जांच करने की अपील की है।

बस्तर में पत्रकारिता का जोखिम

बस्तर क्षेत्र में पत्रकारिता करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। यहां काम करने वाले पत्रकार अक्सर भ्रष्टाचार, नक्सलवाद और पुलिस से जुड़ी खबरों को उजागर करने के कारण जोखिम में रहते हैं। मुकेश चंद्राकर की गुमशुदगी के बाद पत्रकारों के संगठन ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से पुलिस अधिकारियों से जल्द से जल्द उनके whereabouts का पता लगाने की अपील की है।

समाज और सरकार के बीच सेतु का काम करते हैं पत्रकार

बस्तर में पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले लोग समाज और सरकार के बीच एक सेतु का काम करते हैं। लेकिन यहां पत्रकारों को लगातार संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि वे भ्रष्टाचार और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते हैं, जो उन्हें कई बार मुश्किलों में डाल देता है। मुकेश चंद्राकर का मामला इस बात का गवाह है कि बस्तर में पत्रकारिता करना अब पहले से कहीं ज्यादा जटिल और जोखिमपूर्ण हो गया है।

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