जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू: आजाद भारत में पहली बार एकजुट हुए सत्ता और विपक्ष के 215 सांसद
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू: आजाद भारत में पहली बार एकजुट हुए सत्ता और विपक्ष के 215 सांसद

नई दिल्ली: कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग की ऐतिहासिक प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह आजाद भारत के इतिहास में पहली बार है जब किसी हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। मानसून सत्र के पहले दिन, 21 जुलाई को, लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में उनके खिलाफ महाभियोग के नोटिस पीठासीन अधिकारियों को सौंपे गए। इन प्रस्तावों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के कुल 215 सांसदों (लोकसभा में 152 और राज्यसभा में 63) के हस्ताक्षर हैं, जो इस मामले पर अभूतपूर्व राजनीतिक एकजुटता को दर्शाता है।
महाभियोग प्रस्ताव को भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जदयू, और सीपीएम सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों का समर्थन मिला है। हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख सांसदों में राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल और पीपी चौधरी जैसे नाम शामिल हैं।
आगे की प्रक्रिया: अब संसद संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत जांच करेगी। न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 की धारा 31बी के अनुसार, यदि एक ही दिन दोनों सदनों में महाभियोग नोटिस दिए जाते हैं, तो एक संयुक्त जांच समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश, किसी हाईकोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे। यह समिति जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच करेगी और तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेगी। रिपोर्ट पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा होगी और उसके बाद जस्टिस वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर मतदान किया जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि – कैश कांड: यह मामला 14 मार्च की रात को जस्टिस वर्मा के लुटियंस स्थित बंगले में लगी आग से जुड़ा है। अग्निशमन विभाग के कर्मियों ने आग बुझाई थी, उस समय जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे। 21 मार्च को कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि जस्टिस वर्मा के घर से ₹15 करोड़ नकद बरामद हुए थे, जिसमें से काफी नोट जल गए थे। घटना के कई वीडियो भी सामने आए थे, जिनमें जस्टिस के घर के स्टोर रूम से ₹500 के जले हुए नोटों के बंडलों से भरे बोरे दिखाई दिए थे। घटना के समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, जिन्हें बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था।
सीजेआई की समिति की रिपोर्ट: 22 मार्च को तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस पैनल ने 4 मई को सीजेआई को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया था। इस रिपोर्ट के आधार पर, ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत, पूर्व सीजेआई खन्ना ने 8 मई को सरकार से जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी। जांच समिति में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं।
जस्टिस वर्मा की चुनौती: जस्टिस यशवंत वर्मा ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को रद्द करने का अनुरोध किया है। जस्टिस वर्मा का तर्क है कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में नकदी बरामद होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे इसमें शामिल हैं, क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी थी या परिसर में कैसे मिली।