रूस से तेल आयात पर भारत का विराम: क्या अमेरिका का दबाव बदलेगा ऊर्जा रणनीति?
रूस से तेल आयात पर भारत का विराम: क्या अमेरिका का दबाव बदलेगा ऊर्जा रणनीति?

नई दिल्ली: भारत की प्रमुख सरकारी तेल कंपनियों ने रूस से कच्चे तेल की खरीद अगले बाइंग साइकल से रोकने का फैसला किया है। यह निर्णय अक्टूबर में लोड होने वाले ऑर्डर्स पर लागू होगा। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब अमेरिका रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर मॉस्को पर आर्थिक दबाव बढ़ा रहा है।
अमेरिका का दबाव और टैरिफ में वृद्धि: रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीद जारी रखने पर भारत के निर्यात पर लगने वाले टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। इसे वॉशिंगटन द्वारा भारत को रूस से कच्चा तेल आयात पूरी तरह बंद करने का स्पष्ट संदेश माना जा रहा है। यह उल्लेखनीय है कि रूस के एक अन्य बड़े खरीदार चीन पर यह टैरिफ लागू नहीं किया गया है।
निजी और सरकारी कंपनियों की स्थिति: इस फैसले के बाद, इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी सरकारी रिफाइनरियों ने स्पॉट मार्केट से रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है। वे अब सरकार के स्पष्ट निर्देशों का इंतजार कर रही हैं। हालांकि, रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी निजी कंपनियां, जो रूस की रोसनेफ्ट से जुड़ी हैं, अपने पुराने समझौतों के तहत रूसी तेल की सप्लाई लेना जारी रखे हुए हैं।
भारत की ऊर्जा रणनीति में बदलाव? यूक्रेन युद्ध से पहले भारत का रूस से तेल आयात नगण्य था, लेकिन हाल ही में यह 20 लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक हो गया था। नए ऑर्डर में कमी के कारण यह स्तर घट सकता है। ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से रूस को अपना सस्ता तेल चीन या अन्य बाजारों में बेचना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, रूस से आयात घटने पर भारत मिडिल ईस्ट, अमेरिका और अफ्रीकी देशों से तेल खरीद बढ़ा सकता है।
भारत पेट्रोलियम के पूर्व रिफाइनरी निदेशक आर. रामचंद्रन के मुताबिक, यह रोक अल्पकालिक चुनौतियां पैदा कर सकती है, लेकिन समय के साथ आपूर्ति-मांग का संतुलन फिर से बहाल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि परिचालन में बदलाव के बावजूद भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी।