उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: 5 KM पैदल स्कूल से लेकर IAS ठुकराकर वकालत और सियासत तक का सफर
उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: 5 KM पैदल स्कूल से लेकर IAS ठुकराकर वकालत और सियासत तक का सफर

नई दिल्ली: भारत के 14वें उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार रात अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपा। 11 अगस्त 2022 को उन्होंने उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था। उनका इस्तीफा उस समय आया है जब संसद का मानसून सत्र चल रहा है, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
जगदीप धनखड़ का जीवन संघर्ष, शिक्षा और समर्पण की एक मिसाल है। राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई 1951 को एक साधारण जाट किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने बचपन से ही कई चुनौतियों का सामना किया। उनके पिता गोकल चंद और माता केसरी देवी ने उन्हें सादगी और मेहनत के मूल्य सिखाए।
शिक्षा और वकालत का सफर: जगदीप धनखड़ की प्रारंभिक शिक्षा किठाना के सरकारी प्राथमिक स्कूल में हुई, जहाँ वे प्रतिदिन 4-5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। इसके बाद, उन्होंने घर्धना के सरकारी मिडिल स्कूल और चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में पढ़ाई की। सैनिक स्कूल में रहते हुए, उनका चयन IIT और NDA के लिए भी हुआ, लेकिन उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना पसंद किया। उन्होंने जयपुर के महाराजा कॉलेज से भौतिकी में बीएससी (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की और 1978-79 में राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। बेहद कम लोग यह जानते हैं कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा (IAS) भी उत्तीर्ण की थी, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक सेवा में न जाकर वकालत को अपना पेशा चुना।
1979 में राजस्थान बार काउंसिल में नामांकन के बाद, उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। 1990 में, मात्र 35 साल की उम्र में, वे राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सबसे युवा अध्यक्ष बने और उसी साल उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा प्राप्त हुआ। उनकी कानूनी विशेषज्ञता ने राजस्थान में जाट समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीतिक यात्रा: धनखड़ ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1989 में जनता दल के टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा चुनाव जीतकर की। वे 1990-91 में चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य राज्यमंत्री भी रहे। 1991 में जनता दल द्वारा टिकट न मिलने पर, वे कांग्रेस में शामिल हो गए और 1993 में अजमेर के किशनगढ़ से विधायक बने। 2003 में, उन्होंने भाजपा का दामन थामा।
2019 से 2022 तक, वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे, जहाँ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनके मतभेद अक्सर सुर्खियों में रहे। 2022 में, NDA ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने मार्गरेट अल्वा को 74.37% वोटों से हराकर जीत हासिल की।
उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ को उनके मुखर स्वभाव के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने हमेशा हर मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी, चाहे वह भ्रष्टाचार में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी में देरी का मामला हो या संविधान में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किए गए संशोधन से संबंधित मुद्दा। उनका इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसके पीछे के कारणों पर अभी भी बहस जारी है।