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900 किमी पदयात्रा पर निकलीं जैन साध्वियां, सम्मेद शिखर तीर्थ में होगी यात्रा समाप्त

जैन समाज की आर्यिका 105 गुरुमति माता के नेतृत्व में 48 साध्वियों का एक विशाल समूह 900 किलोमीटर की नंगे पैर पदयात्रा पर निकला है।

राजनांदगांव। जैन समाज की आर्यिका 105 गुरुमति माता के नेतृत्व में 48 साध्वियों का एक विशाल समूह 900 किलोमीटर की नंगे पैर पदयात्रा पर निकला है। यह यात्रा आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की समाधि स्थल चन्द्रगिरी तीर्थ से शुरू हुई और झारखंड स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ पर समाप्त होगी। इस कठिन यात्रा के दौरान साध्वी वृंद डोंगरगांव, राजनांदगांव, भिलाई, रायपुर, जशपुर, अंबिकापुर होते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचेंगी।

विद्यासागर महाराज को समर्पित विनयांजलि के बाद साध्वियों का विहार

गत वर्ष फरवरी में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की समाधि चन्द्रगिरी तीर्थ में हुई थी। हाल ही में उनकी स्मृति में विनयांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी भाग लिया था। इस दौरान आचार्य श्री की स्मृति में एक स्मारक का भूमिपूजन और ₹100 का स्मृति सिक्का जारी किया गया।

विनयांजलि समर्पण के बाद आर्यिका 105 गुरुमति माता, दृढ़मति माता, पावन मति माता सहित 48 साध्वियों का समूह 900 किमी लंबी पदयात्रा पर निकला है, जो राज्य के पहले जैन तीर्थ चन्द्रगिरी और जैन धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर को जोड़ती है

42 साल बाद सम्मेद शिखर की वंदना

आर्यिका गुरुमति माता 42 वर्षों के बाद पुनः सम्मेद शिखर की वंदना के लिए जा रही हैं। 1956 में जन्मीं माता गुरुमति ने 18 वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था और 1983 में आचार्य विद्यासागर महाराज के साथ पहली बार सम्मेद शिखर की वंदना की थी। बाद में 2 अक्टूबर 1987 को उन्हें आर्यिका दीक्षा प्राप्त हुई थी।

बेहद कठिन यात्रा, तीर्थकरों की मोक्ष भूमि की ओर बढ़ रही साध्वियां

79 वर्षीय आर्यिका गुरुमति माता और 64 वर्षीय दृढ़मति माता सहित अन्य साध्वियां गर्म मौसम और कठिन मार्ग के बावजूद नंगे पैर यात्रा कर रही हैं। जैन धर्म में सम्मेद शिखर सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है, क्योंकि यह 20 तीर्थंकरों और करोड़ों मुनियों की मोक्ष स्थली है।

कहा जाता है कि जो भी सम्मेद शिखर तीर्थ की तीन बार वंदना करता है, उसे नर्क गति प्राप्त नहीं होती। जैन अनुयायियों के लिए यह तीर्थ वैसा ही महत्व रखता है, जैसा हिंदुओं के लिए चारधाम और मुस्लिमों के लिए मक्का-मदीना

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