जिमीकंद की खेती पर छत्तीसगढ़ी गीत: महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण की नई पहल
राजनांदगांव में मां बम्लेश्वरी फेडरेशन द्वारा जिमीकंद की खेती को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ी गीत तैयार किया गया। जानें जिमीकंद के फायदे और महिलाओं की आर्थिक उन्नति की कहानी।
राजनांदगांव। मां बम्लेश्वरी फेडरेशन द्वारा जिमीकंद की खेती को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ी भाषा में एक खास गीत तैयार किया गया है। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को जिमीकंद की खेती से जोड़कर उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है। पद्मश्री फुलबासन बाई यादव और फेडरेशन के संरक्षक शिव देवांगन के नेतृत्व में इस अभियान के तहत महिलाओं को जागरूक किया जा रहा है।
जिमीकंद गीत: खेती के फायदे को दर्शाता संदेश
गीत में जिमीकंद की विशेषताओं, इसकी खेती से होने वाले फायदे, और इसे तैयार करने के सरल तरीके को छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
गीत की शुरुआत “हाय-रे मोर जिमी कांदा, मन ला गजब तैं सुहाये” से की गई है, जो सुनने वालों को आकर्षित करती है।
गीत में शामिल मुख्य बिंदु:
- जिमीकंद के गुण और पोषण लाभ
- दो साल में तैयार फसल और बेहतर आमदनी
- शून्य लागत पर खेती की विधि
- जिमीकंद के स्वाद और उपयोगिता का वर्णन
खिलेश्वरी साहू: गीत की लेखिका और गायिका
इस गीत को ग्राम बनहरदी की खिलेश्वरी साहू ने लिखा और अपनी आवाज दी है। इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी शेयर किया जा रहा है, जिससे अधिक से अधिक महिलाएं जागरूक हो सकें।
महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण में जिमीकंद का योगदान
- लाखों की आमदनी:
खैरागढ़, राजनांदगांव, और मोहला-मानपुर जिलों की महिलाएं जिमीकंद की खेती से हर साल लाखों रुपये की आमदनी कमा रही हैं। - दीपावली पर विशेष फसल:
त्योहारों के समय जिमीकंद की मांग बढ़ जाती है, जिससे महिलाओं को बेहतर बाजार और मुनाफा मिलता है। - दो वर्षों में तैयार फसल:
गीत के माध्यम से इस बात पर जोर दिया गया है कि जिमीकंद की फसल बिना खाद के दो वर्षों में तैयार हो जाती है।
महिला समूह और गांव-गांव जागरूकता अभियान
पद्मश्री फुलबासन बाई यादव और शिव देवांगन गांव-गांव जाकर महिलाओं को इस खेती के फायदे समझा रहे हैं। इस अभियान के तहत महिलाएं जिमीकंद की खेती से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।