
छत्तीसगढ़ के कुरुद नगर पंचायत चुनाव ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए एक अहम सीख दी है। चुनावी गणित के अनुसार, यदि दोनों दल महज 2.54% अतिरिक्त मतदाताओं को अपने पक्ष में कर लेते, तो नतीजे पूरी तरह बदल सकते थे। इस मामूली अंतर के कारण कोई भी दल पूर्ण बहुमत के साथ अध्यक्ष की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाया।
न भाजपा का जश्न, न कांग्रेस की जीत
निकाय चुनाव के नतीजे आने के बाद कुरुद में सन्नाटा पसरा हुआ है। भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों को स्पष्ट बढ़त नहीं मिल पाई, जिससे किसी के लिए भी खुलकर जश्न मनाने की स्थिति नहीं बनी। जनता ने ऐसा जनादेश दिया, जिससे स्पष्ट होता है कि भाजपा और कांग्रेस को संगठनात्मक मजबूती के साथ रणनीतिक एकजुटता की भी जरूरत थी।
बहुत कम अंतर से हार-जीत का फैसला
- भाजपा को मिले वोट: 44.79%
- कांग्रेस को मिले वोट: 42.25%
- आम आदमी पार्टी को मिले वोट: 0.72%
- निर्दलीय प्रत्याशी को मिले वोट: 1.58%
चुनाव के कुछ वार्डों में हार-जीत का अंतर बेहद कम था। जैसे:
- वार्ड 1 में भाजपा सिर्फ 4 वोटों से पीछे रही।
- वार्ड 3 और 4 में अंतर 10 वोटों का था।
- वार्ड 15 में भाजपा मात्र 14 वोटों से हार गई।
वहीं, कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशी कुछ वार्डों में बढ़त बनाने में सफल रहे, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए उन्हें अपेक्षित वोट नहीं मिले। यदि दोनों दल रणनीतिक रूप से इन वोटर्स को साध लेते, तो सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल सकता था।
व्यक्तित्व और नगर विकास को मिले ज्यादा वोट
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में किसी भी दल की लोकप्रियता में उल्लेखनीय गिरावट या बढ़ोतरी नहीं हुई। स्थानीय मतदाताओं ने पार्टी से अधिक व्यक्तिगत छवि और नगर विकास को महत्व दिया।
भाजपा के भीतर संगठन और प्रत्याशी चयन को लेकर असंतोष देखने को मिला। कई कार्यकर्ताओं ने खुले तौर पर या अंदरखाने विरोध जताया, जिससे गुटबाजी बढ़ी। दूसरी ओर, कांग्रेस में भी आंतरिक कलह और गुटबाजी चुनाव परिणामों को प्रभावित करती रही।
गुटबाजी और क्रॉस वोटिंग बनी हार का कारण
पार्टी के अंदरूनी मतभेद इस बार भी साफ नजर आए।
- भाजपा ने पिछली बार सत्ता से बाहर रहते हुए केवल एक पार्षद जीता था। इस बार सत्ता में रहते हुए भी बहुमत नहीं हासिल कर पाई।
- कांग्रेस में गुटबाजी पहले से ज्यादा उजागर हुई और संगठनात्मक एकता का अभाव दिखा।
- कुछ वार्डों में क्रॉस वोटिंग भी हार का कारण बनी। आरोप हैं कि अपनी ही पार्टी के नेताओं ने भीतरघात किया, जिससे कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी मजबूत नहीं कर पाई।
सीख: आगे के चुनावों के लिए रणनीतिक बदलाव जरूरी
कुरुद निकाय चुनाव के नतीजे यह साफ संदेश देते हैं कि मामूली चूक भी बड़ी हार का कारण बन सकती है। भाजपा और कांग्रेस, दोनों को अपनी गुटबाजी खत्म कर संगठन को मजबूत करना होगा। इसके अलावा, स्थानीय नेताओं की भूमिका और जनता के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए भविष्य की रणनीति तैयार करनी होगी, ताकि आने वाले चुनावों में सफलता सुनिश्चित हो सके।