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पश्चिम बंगाल मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी का खुलासा, 1.04 करोड़ फर्जी नाम शामिल

पश्चिम बंगाल मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी का खुलासा, 1.04 करोड़ फर्जी नाम शामिल

कोलकाता। पश्चिम बंगाल की राजनीति में उस वक्त हड़कंप मच गया जब एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई, जिसमें दावा किया गया है कि राज्य की मतदाता सूची में भारी अनियमितताएं हैं और इसमें 1.04 करोड़ से अधिक फर्जी नाम शामिल हैं। इस खुलासे ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच एक नया सियासी घमासान छेड़ दिया है।

अगस्त 2025 में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की मतदाता सूची में दर्ज किए गए लगभग 1.04 करोड़ नाम फर्जी हैं, जो राज्य के कुल मतदाताओं का 13.7% है। यह रिपोर्ट एस पी जैन, इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च, मुंबई के विधु शेखर और आईआईएम विशाखापट्टनम के मिलन कुमार जैसे प्रतिष्ठित शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई है। इस अध्ययन में कई गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं, जिनमें मृत व्यक्तियों, नाबालिगों और राज्य छोड़ चुके लोगों के नाम मतदाता सूची में अभी भी मौजूद हैं। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि कुछ जिलों में मतदाताओं की संख्या वहां की वास्तविक जनसंख्या से भी अधिक पाई गई है, जिसे केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित गड़बड़ी बताया गया है।

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, बीजेपी ने ममता बनर्जी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। बीजेपी का कहना है कि टीएमसी सरकार चुनावी लाभ लेने के लिए जानबूझकर फर्जी मतदाताओं का उपयोग कर रही है। बीजेपी ने चुनाव आयोग से इस मामले में पारदर्शी और गहन जांच की मांग की है। पार्टी ने विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की भी मांग की है, जिसमें घर-घर जाकर सत्यापन किया जाए और मृत या डुप्लीकेट नामों को तुरंत सूची से हटाया जाए। इसके अलावा, बीजेपी ने वोटर लिस्ट को आधार कार्ड और जन्म-मृत्यु रजिस्टर से जोड़ने का भी सुझाव दिया है ताकि भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोका जा सके।

दूसरी ओर, सत्तारूढ़ टीएमसी ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि यह रिपोर्ट राजनीति से प्रेरित है और बीजेपी चुनाव में अपनी संभावित हार को देखते हुए ऐसे निराधार आरोप लगा रही है। उन्होंने बीजेपी पर चुनाव से पहले मतदाताओं के बीच भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है। हालांकि, रिपोर्ट के ठोस आंकड़े और चौंकाने वाले खुलासे ने इस मुद्दे को एक राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है।

यह मामला अब केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और मतदाता सूची की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि इस गंभीर मामले पर चुनाव आयोग क्या कदम उठाता है और फर्जी नामों को हटाने के लिए क्या विशेष अभियान चलाता है ताकि भविष्य में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।

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