देशभर में रक्षा मंत्रालय की 2000 एकड़ से अधिक जमीन पर अतिक्रमण, सुप्रीम कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल
देशभर में रक्षा मंत्रालय की 2000 एकड़ से अधिक जमीन पर अतिक्रमण, सुप्रीम कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल

नई दिल्ली: देश की सुरक्षा से जुड़ी रक्षा मंत्रालय की हजारों एकड़ ज़मीन पर अवैध कब्ज़े और अतिक्रमण का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की नज़र में आ गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने जानना चाहा है कि आखिर रक्षा संपदा के अधिकारी और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के बिना इतनी बड़ी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कैसे हो सकता है, और इस पर आलीशान बंगले व शॉपिंग कॉम्प्लेक्स कैसे बन गए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ देशभर में रक्षा भूमि के कथित अतिक्रमण और दुरुपयोग की जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे ‘कॉमन कॉज़’ नामक गैर-सरकारी संगठन ने 2014 में दायर किया था। सुनवाई के दौरान, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लगभग 2,024 एकड़ रक्षा भूमि पर अतिक्रमण है, जबकि 1,575 एकड़ भूमि उन लोगों के अनधिकृत कब्ज़े में है, जिन्होंने कृषि के मकसद से ज़मीन को लीज़ पर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर कड़ी नाराज़गी जताई कि रक्षा मंत्रालय की बहुमूल्य ज़मीनों को 99 साल की लीज़ या अनिश्चित समय के लिए निजी लोगों को सस्ते दामों पर कैसे दिया गया, जबकि उनकी वास्तविक कीमत कहीं ज़्यादा थी। कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि इन मामलों में अपीलें समय पर क्यों नहीं की गईं, जिससे अतिक्रमणकर्ताओं को रोकने में देरी हुई। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं है। यदि यह कोई रैकेट नहीं है, तो यह उच्च अधिकारियों की घोर लापरवाही है, जो शायद इस मुद्दे की गंभीरता को समझ ही नहीं सके।”
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि अतिक्रमण हटाने के लिए राज्य सरकार के कलेक्टरों पर निर्भर रहने के बजाय केंद्र अपने JAG (जज एडवोकेट जनरल) अफसरों को मैदान में उतारे। इन अफसरों को कानून की गहरी समझ होती है और वे तेज़ी व निष्पक्षता से काम कर सकते हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह इस पर अपनी रिपोर्ट दे और बताए कि अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि 2017 में सरकार ने अपने हलफनामे में अतिक्रमण की बात स्वीकार की थी, लेकिन तब 87% रक्षा भूमि का राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण (mutation) बताया गया था, जो अब घटकर 85% रह गया है। उन्होंने यह भी बताया कि देश में कुल 17 लाख एकड़ रक्षा भूमि है, जिसमें से सरकार केवल 75,000 एकड़ (यानी 5% से भी कम) का ही हिसाब दे पाई है।
यह मामला इसलिए भी बेहद गंभीर है क्योंकि अगर रक्षा ज़मीनें निजी हाथों में चली गईं, तो भविष्य में वे किसके पास जाएंगी, यह सरकार के नियंत्रण में नहीं रहेगा, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट अब एक जांच टीम गठित करने पर विचार कर रहा है, जिसमें रक्षा मंत्रालय के अलावा कैग (CAG), कानून और राजस्व विभाग के विशेषज्ञ शामिल हों। इस मामले की अगली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।