डीके अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट ठप, 3.84 करोड़ खर्च के बावजूद मरीज सिलेंडर पर निर्भर
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित डीकेएस (डीके) अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट की खराबी से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
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रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित डीकेएस (डीके) अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट की खराबी से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल प्रबंधन को खुद का ऑक्सीजन प्लांट होने के बावजूद बीते दो वर्षों में ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के लिए 3.84 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
ऑक्सीजन प्लांट मरम्मत के नाम पर 17 लाख, फिर भी नहीं हुआ चालू
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 में मेडिग्लोब मेडिकल सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड द्वारा डीके अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगाया गया था, जिसने चार साल तक मरीजों की जरूरतों को पूरा किया। लेकिन 2022 में प्लांट में तकनीकी खराबी आ गई, जिससे ऑक्सीजन उत्पादन ठप हो गया। इसके बाद हर महीने 16 लाख रुपये खर्च कर सिलेंडर के जरिए मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई।
राज्य सरकार की एजेंसी छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) ने संबंधित कंपनी को प्लांट सुधारने की जिम्मेदारी दी और 17 लाख रुपये का भुगतान किया। लेकिन कंपनी ने केवल जांच की औपचारिकता निभाई और प्लांट चालू नहीं कर सकी। अक्टूबर 2023 में अस्पताल प्रबंधन ने शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कंपनी पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए। नतीजतन, मेडिग्लोब मेडिकल सिस्टम प्रा. लि. को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और उसे सरकारी उपकरणों की आपूर्ति व रखरखाव कार्यों से हटा दिया गया।
कोरोनाकाल में मददगार रहा प्लांट, अब पीएम केयर प्लांट भी ठप
डीके अस्पताल का यह ऑक्सीजन प्लांट कोरोना महामारी के दौरान मरीजों और कोविड सेंटरों के लिए संजीवनी साबित हुआ था। इसके अलावा, प्रधानमंत्री केयर फंड से अस्पताल परिसर में दूसरा ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन तकनीकी समस्याओं के चलते अब तक चालू नहीं हो सका।
जियो लाइट बना समस्या की जड़, 53 लाख खर्च फिर भी नतीजा शून्य
अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, प्लांट ठप होने की मुख्य वजह जियो लाइट उपकरण की खराबी थी, जिसके लिए पहले ही 53 लाख रुपये भुगतान किया जा चुका था। प्लांट फिर भी शुरू नहीं हुआ तो कंपनी ने रखरखाव के लिए 17 लाख रुपये और मांगे, मगर मरम्मत के बाद भी ऑक्सीजन उत्पादन शुरू नहीं हुआ।
प्रशासनिक लापरवाही या घोटाला?
अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि यदि ऑक्सीजन प्लांट चालू रहता तो 3.84 करोड़ रुपये अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में खर्च किए जा सकते थे। इस मामले ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं।