दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा का पायलट प्रोजेक्ट: IMD की मंजूरी मिली –
दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा का पायलट प्रोजेक्ट: IMD की मंजूरी मिली -

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक बड़ा कदम उठाया जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के एक पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को कम करने के लिए कृत्रिम रूप से वर्षा कराना है।
परियोजना का उद्देश्य और क्रियान्वयन: दिल्ली सरकार इस पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है और उपयुक्त बादलों की उपलब्धता होते ही इसे शुरू किया जाएगा। यह परियोजना दिल्ली के वायु प्रदूषण संकट का मुकाबला करने के लिए एक संभावित समाधान के रूप में देखी जा रही है, खासकर उन महीनों में जब प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है।
वैज्ञानिक पहलू और IIT कानपुर की भूमिका: इस परियोजना के वैज्ञानिक पहलुओं का प्रबंधन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर द्वारा किया जाएगा। कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया में एक विशेष मिश्रण को बादलों में छोड़ा जाएगा। छोटे विमानों का उपयोग करके सिल्वर आयोडाइड, आयोडीन नमक और रॉक सॉल्ट (चट्टानी नमक) के मिश्रण को बादलों में डाला जाएगा, जिससे वर्षा को उत्तेजित किया जा सके। यह मिश्रण बादलों में संघनन (condensation) की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है, जिससे वर्षा की बूंदें बनने लगती हैं और अंततः वर्षा होती है।
बादलों का चयन और आवश्यक शर्तें: कृत्रिम वर्षा के लिए सभी प्रकार के बादल उपयुक्त नहीं होते। इस परियोजना में विशेष रूप से निंबोस्ट्रेटस बादलों (Nimbostratus clouds) को लक्षित किया जाएगा। ये बादल 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं और इनमें कम से कम 50% आर्द्रता (humidity) का होना आवश्यक है। बादलों की सही स्थिति और आर्द्रता का स्तर कृत्रिम वर्षा की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
परियोजना का वित्तपोषण: इस पायलट प्रोजेक्ट का पूरा खर्च दिल्ली सरकार वहन करेगी। परियोजना की अनुमानित लागत ₹3.21 करोड़ है। यह एक महत्वपूर्ण निवेश है जो प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बना हुआ है, और यह पायलट प्रोजेक्ट एक अभिनव दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह भविष्य में अन्य अत्यधिक प्रदूषित शहरों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है। परियोजना की सफलता बादलों की उपलब्धता और वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के सटीक निष्पादन पर निर्भर करेगी।