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भारतीय फार्मा उद्योग पर ट्रंप के 200% ? टैरिफ का संभावित असर –

भारतीय फार्मा उद्योग पर ट्रंप के 200% ? टैरिफ का संभावित असर -

नई दिल्ली: अमेरिका में 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद, डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर आयातित दवाओं पर भारी शुल्क लगाने का प्रस्ताव देकर भारतीय दवा उद्योग के लिए चिंता बढ़ा दी है। ट्रंप प्रशासन का यह कदम भारत सहित उन सभी देशों को प्रभावित करेगा जो अमेरिका को बड़ी मात्रा में फार्मा उत्पाद निर्यात करते हैं। इस प्रस्ताव के तहत, दवाओं पर 200% तक का टैरिफ लगाया जा सकता है, जिससे भारतीय दवा कंपनियों के राजस्व और लाभ पर सीधा असर पड़ सकता है।

ट्रंप प्रशासन का यह कदम 1962 के ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट की धारा 232 के तहत “राष्ट्रीय सुरक्षा” से जुड़ा हुआ है। कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं की आपूर्ति में आई बाधाओं के बाद अमेरिका को दवा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह टैरिफ प्रस्ताव लाया गया है, जिसका मकसद विदेशी विनिर्माण को हतोत्साहित करना और अमेरिकी कंपनियों को अपने देश में उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है।

इस 200% टैरिफ का भारतीय फार्मा उद्योग पर कई तरह से असर पड़ सकता है। सबसे पहले, यह अमेरिका में भारतीय दवाओं की कीमतों में भारी वृद्धि करेगा, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए दवाएं महंगी हो जाएंगी। दूसरा, इससे भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना बेहद मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि उनकी दवाओं की कीमतें अमेरिकी उत्पादों की तुलना में कई गुना अधिक हो जाएंगी। इससे भारतीय कंपनियों के राजस्व और निर्यात पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

हालांकि, भारतीय फार्मा कंपनियों ने इस संभावित खतरे का सामना करने के लिए कुछ रणनीतिक कदम उठाए हैं। कई कंपनियों ने पहले से ही अमेरिका में 6 से 18 महीनों का स्टॉक तैयार कर लिया है, ताकि यदि यह टैरिफ जल्द लागू हो भी जाए तो वे शुरुआती झटके से बच सकें। व्हाइट हाउस ने भी कंपनियों को अपनी रणनीति बदलने के लिए 1 से 1.5 साल का समय देने का संकेत दिया है, जिससे उद्योग को तैयारी करने का अवसर मिलेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह टैरिफ 2026 के अंत तक लागू नहीं होता है, तो इसका वास्तविक असर 2027 या 2028 में ही देखने को मिलेगा। हालांकि, यह प्रस्ताव भारतीय दवा कंपनियों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है। भारतीय दवा उद्योग, जो वैश्विक जेनेरिक दवा बाजार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, को इस चुनौती का सामना करने के लिए अपनी रणनीतियों को फिर से तैयार करना होगा।

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