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राहुल गांधी ने SEBI चीफ पर लगाए गंभीर आरोप, कहा- शेयर बाजार में बड़ा जोखिम

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हिंडनबर्ग रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के आधार पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दोनों ने अडाणी ग्रुप की मनी सिफोनिंग स्कैंडल में शामिल गुमनाम विदेशी फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी।

राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सेबी जैसी संस्थाएं, जो शेयर बाजार को नियंत्रित करती हैं, अब समझौता कर चुकी हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने अब तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया? गांधी ने चेतावनी दी कि इस स्थिति में भारतीय स्टॉक मार्केट में एक बड़ा जोखिम है, और यह निवेशकों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

सेबी पर राहुल का हमला: इस्तीफे की मांग

राहुल गांधी ने कहा, “सेबी की चेयरपर्सन पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं। यह साफ संकेत देता है कि जिस संस्था को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए, वह खुद ही प्रभावित हो चुकी है। ऐसे में निवेशकों की मेहनत की कमाई डूबने का खतरा है। अगर ऐसा होता है, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? प्रधानमंत्री मोदी, सेबी चेयरपर्सन, या फिर गौतम अडाणी?”

JPC जांच की मांग

राहुल गांधी ने इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा जांच की मांग को दोहराया और सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोदी इस जांच से बचने की कोशिश क्यों कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में नए और बेहद गंभीर आरोप सामने आए हैं, जो यह साबित करते हैं कि सरकार और सेबी दोनों ने इस मुद्दे को नजरअंदाज किया है।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट और SEBI चीफ पर आरोप

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में SEBI चीफ माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर आरोप है कि उन्होंने अडाणी मनी सिफोनिंग स्कैंडल में इस्तेमाल किए गए गुमनाम विदेशी फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी। रिपोर्ट के अनुसार, SEBI ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल को बताया था कि वह 13 अपारदर्शी विदेशी संस्थाओं की जांच कर रहा है, जिन्होंने अडाणी समूह की कंपनियों में हिस्सेदारी रखी थी। हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इन जांचों का क्या परिणाम हुआ।

इस मुद्दे पर विपक्ष के तीखे हमलों के बीच अब यह देखना बाकी है कि सरकार और सेबी इस पर क्या कदम उठाते हैं।

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