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रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेसिडेंट पदों को सरेंडर करने का विवाद
रायगढ़ के श्री लखीराम अग्रवाल स्मृति शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में जूनियर रेसिडेंट (जेआर) के पदों को सरेंडर करने के प्रस्ताव से विवाद खड़ा हो गया है। मेडिकल कॉलेज के डीन द्वारा चिकित्सा शिक्षा आयुक्त को भेजे गए पत्र में इन पदों की आवश्यकता को अनावश्यक बताते हुए इन्हें समाप्त करने की सिफारिश की गई है।
डीन का तर्क:
- एनएमसी के नियम:
- नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) के अनुसार, पीजी पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्र ही रेसिडेंट डॉक्टर के रूप में मान्य हैं।
- रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में पीजी छात्रों की पर्याप्त संख्या है।
- वेतन-भत्ते की बचत:
- नियमित और संविदा आधार पर जूनियर रेसिडेंट डॉक्टरों को हटाने से कालेज का वित्तीय बोझ कम होगा।
- इस राशि का उपयोग पीजी छात्रों को स्टाइपेंड के रूप में करने का प्रस्ताव है।
- स्थानांतरण का सुझाव:
- मौजूदा जूनियर रेसिडेंट डॉक्टरों को उन कॉलेजों में स्थानांतरित किया जाए, जहां पीजी पाठ्यक्रम नहीं चल रहे हैं।
- स्वास्थ्य विभाग की अन्य संस्थाओं में उनकी सेवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
प्रभावित डॉक्टरों की चिंता:
- नौकरी पर संकट:
- रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में कार्यरत 17 जूनियर रेसिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति खतरे में है।
- प्रभावित डॉक्टर राजधानी रायपुर में अपनी शिकायत दर्ज कराने की योजना बना रहे हैं।
- इलाज की व्यवस्था पर असर:
- छत्तीसगढ़ डॉक्टर फेडरेशन के अध्यक्ष डॉ. हीरा सिंह ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई है।
- जूनियर रेसिडेंट डॉक्टर अस्पतालों में इलाज के भारी दबाव को संभालने में सहायक होते हैं।
- पीजी छात्रों को पढ़ाई और इलाज दोनों संभालना पड़ता है, जिससे उनकी दक्षता प्रभावित हो सकती है।
डॉक्टर फेडरेशन की प्रतिक्रिया:
- डॉक्टर फेडरेशन ने स्पष्ट किया है कि वे इस प्रस्ताव का विरोध करेंगे।
- एमबीबीएस स्तर के डॉक्टर अस्पताल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विवाद का संभावित समाधान:
- जूनियर रेसिडेंट डॉक्टरों का स्थानांतरण:
- नए मेडिकल कॉलेजों में जहां पीजी कोर्स नहीं हैं, वहां स्थानांतरित किया जा सकता है।
- वित्तीय पुनर्गठन:
- बजट का सही उपयोग सुनिश्चित कर पीजी छात्रों और जूनियर रेसिडेंट डॉक्टरों के बीच संतुलन बनाया जाए।