छत्तीसगढ़

गांधी जी की जयंती पर विशेष:  छत्तीसगढ़ के साव जी ,जानिए कौन है साव जी ।

गांधी जी की जयंती पर विशेष:  छत्तीसगढ़ के साव जी ,जानिए कौन है साव जी ।

महात्मा गांधी ने साव जी  कहा –  ‘साव जी’ एक तो मैं पागल और आप मुझसे भी बड़े पागल, ऐसे में देश आजाद होकर रहेगा,

आज देश गांधी जयंती पर उनसे जुड़ी स्मृतियों को याद कर रहा है. आज हम छत्तीसगढ़ और महात्मा गांधी से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं। यह कहानी छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के फ्रीडम फाइटर गजाधर साव से जुड़ी है, जहां महात्मा गांधी ने गजाधर साव से कहा, “एक तो मैं पागल हूँ और आप मुझसे भी पागल हूँ.” पूरी कहानी जानिए।

जब भी Freedom Fighters की बात होती है, तो बिलासपुर जिले (अब मुंगेली जिले में) के देवरी गांव का ज़िक्र अवश्य होता है। देवरी गांव आज भी मध्यप्रदेश शासनकाल के फ्रीडम फाइटर से जुड़ा हुआ है क्योंकि इस गांव में 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा, विदेशी वस्तु बहिष्कार, असहयोग आंदोलन और जंगल सत्याग्रह में भाग लिया और 1930 और 1932 में जेल भी गए।

महात्मा गांधी ने कहा कि –

मुंगेली क्षेत्र की स्थिति भारत के मानचित्र पर सुई के एक नोक के बराबर होगी। बावजूद इसके, मुंगेलीवासी भारत की स्वतंत्रता के संग्राम में जान की परवाह न करके बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, जो गर्व करने योग्य है। उस समय मुंगेली के देवरी निवासी गजाधर साव को छत्तीसगढ़ का प्रभावशाली नेता माना जाता था, जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार मनोज अग्रवाल ने बताया है। मुंगेली क्षेत्र के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गजाधर साव थे। मुंगेली के पास के छोटे से गाँव देवरी के मालगुजार साव 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन से स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हुए। 1917 में होमरूल आंदोलन के दौरान वे बिलासपुर शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि थे।

1921 में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों का प्रसार हुआ। 25 मार्च 1931 में गांव के लगभग दो दर्जन साथियों के साथ कांग्रेस के कराची अधिवेशन में पहुंचे। साव की कार्यशैली ने अधिवेशन के दौरान सरदार वल्लभ भाई पटेल को इतना प्रभावित किया कि वे मंच से इन्हें “छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता” कहकर संबोधित करते थे।

16 दिसंबर 1936 को पं. जवाहरलाल नेहरू, कांग्रेस अध्यक्ष, मुंगेली पहुंचे तो साव ने उनसे कहा कि वे आगर नदी पुल से पैदल ही नगर में प्रवेश करें। किंतु उनकी बात नहीं सुनी गई, इसलिए वे परेशान होकर पुल पर लेट गए। क्या कोशिश की गई? किन्तु वे नहीं मानते? पं. नेहरू ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अगर साव नहीं उठते हैं तो कार को ऊपर से ही चला दो। पं. नेहरू की क्रूरता भी जारी रही, और अंततः पं. नेहरू को कार से उतरकर जाना पड़ा।

इस तरह भी विरोध किया गया –

पं. कालीचरण शुक्ल, जिन्हें पूरे क्षेत्र में मुंगेली के गांधी के रूप में जाना जाता था, ने अपने साप्ताहिक अखबार में अंग्रेजों के खिलाफ लगातार आवाज उठाई थी? इसलिए उन्हें हर समय जुर्माना देना पड़ता था और कभी-कभी उनका प्रेस भी जब्त हो जाता था? किंतु पं. शुक्ला, अपने धुन के दीवाने, धन जुटाकर जुर्माना भरते और फिर अंग्रेज शासन के खिलाफ बोलना शुरू कर देते थे। ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे बाबूलाल केशरवानी, जो विदेशी कपड़े के खिलाफ संघर्ष करते रहे।

 

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