सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को नए आपराधिक कानून में अपवाद मानने के खिलाफ याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब…
सुप्रीम कोर्ट ने नए आपराधिक कानून के तहत वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपवाद माने जाने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने ‘ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसिएशन’ (एआईडीडब्ल्यूए) की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया और कहा कि इसे वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की मांग करने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जुलाई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। बेंच ने कहा, “यह एक संवैधानिक मुद्दा है। नए कानून के बाद भी यह ज्वलंत रहेगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने 16 जनवरी, 2023 को भारतीय दंड संहिता के उस प्रावधान के खिलाफ कुछ याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन से पति को सुरक्षा प्रदान करता है।
क्या है विवाद की वजह
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं माना जाएगा।
यहां तक कि नए कानून- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद-2 में स्पष्ट किया गया है कि यदि पत्नी की उम्र 18 साल से कम नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं है।
बीएनएस के तहत अपवाद के अलावा, एआईडीडब्ल्यूए ने बीएनएस की धारा 67 की संवैधानिकता को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जो अलग हो चुकीं पत्नियों से बलात्कार करने वाले विवाहित पुरुषों के लिए दो से सात साल तक की सजा का प्रावधान करती है।
वकील रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर की गई याचिका
वकील रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर याचिका में इस आधार पर प्रावधान पर आपत्ति जताई गई है कि संबंधित सजा बलात्कार के मामलों में लागू अनिवार्य न्यूनतम 10 साल की सजा से कम है।
उन्होंने बीएनएसएस की असंवैधानिक धारा 221 की भी आलोचना की, जो धारा 67 के तहत एक “उदार शासन” की सुविधा प्रदान करती है और अदालत को पत्नी की शिकायत पर अपराध का गठन करने वाले तथ्यों की प्रथम दृष्टया संतुष्टि के बिना अपराध का संज्ञान लेने से रोकती है…”।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की सेक्स के लिए सहमति को नकारता है और एक महिला के व्यक्तित्व की अधीनता के बारे में यौन और लैंगिक रूढ़िवादिता को कायम रखता है।
याचिका में कहा गया है कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति के लिए उसकी सहमति की कानूनी स्थिति को प्रभावित करने वाले विवादित प्रावधान स्पष्ट रूप से मनमाने हैं।
बीएनएस की धारा 63 के तहत विवाहित महिलाओं को उनके पति द्वारा किए गए अपराध की शिकायत करने के कानूनी अधिकार से वंचित करने को उचित ठहराने के लिए कोई तय सिद्धांत नहीं है। इसमें आगे कहा गया है कि अपवाद को बनाए रखने के “उद्देश्य” के रूप में विवाह की “संस्था” की सुरक्षा पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और अनुचित है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 के खिलाफ है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की शारीरिक अखंडता, निर्णयात्मक स्वायत्तता और गरिमा के अधिकारों को छीन लेता है।
बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं में से एक इस मुद्दे पर 11 मई, 2022 के दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित फैसले के संबंध में दायर की गई है। यह अपील दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक महिला द्वारा दायर की गई है।
वहींं, एक अन्य याचिका एक व्यक्ति ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की है, जिसने उसकी पत्नी के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 23 मार्च, 2022 को कहा था कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है।