इस मामले में संभागायुक्त महादेव कावरे ने एक बार फिर सभी चार टीमों को तलब किया है, ताकि वे जांच की स्थिति पर स्पष्टीकरण दे सकें और यह बता सकें कि रिपोर्ट जमा करने में इतनी देरी क्यों हो रही है। अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि जांच एक सप्ताह के भीतर पूरी हो जाएगी और रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी जाएगी, लेकिन अब एक महीने से अधिक समय हो गया है और जांच अभी भी अधूरी है। यह विलंब जांच की पारदर्शिता और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई पर सवाल उठाता है।
यह घोटाला भूमि अधिग्रहण के मुआवजे में अनियमितताओं से जुड़ा है। भारतमाला परियोजना के लिए जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई थी, उनमें से कई किसानों ने शिकायत की है कि उन्हें उनकी जमीन का सही मुआवजा नहीं मिला है। संभागायुक्त कार्यालय को इस संबंध में 150 से अधिक शिकायतें और दावे प्राप्त हुए हैं, जिनमें से अधिकांश किसानों ने आरोप लगाया है कि उन्हें अपनी जमीन के बदले में बहुत कम मुआवजा मिला है। इसके अलावा, कई शिकायतें ऐसी भी हैं, जहां मुआवजा उन लोगों को दिया गया है जो जमीन के वास्तविक मालिक नहीं थे।
यह समस्या सिर्फ रायपुर संभाग तक ही सीमित नहीं है। दुर्ग संभाग में भी इसी तरह की देरी का जिक्र किया गया है, जहां दुर्ग-रायपुर बाईपास के निर्माण से संबंधित 250 से अधिक शिकायतें अभी भी लंबित हैं। इन शिकायतों में भी भूमि अधिग्रहण और मुआवजे में अनियमितताओं के आरोप शामिल हैं। अधिकारियों की निष्क्रियता और जांच में देरी से जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा है और वे सरकार से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
यह स्थिति दिखाती है कि प्रशासन किस तरह से महत्वपूर्ण मामलों को लटकाए रखता है, जिससे दोषियों को बचने का मौका मिल जाता है। जब तक दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती, तब तक इस तरह के घोटाले बार-बार सामने आते रहेंगे। सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और जांच को जल्द से जल्द पूरा कर रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए, ताकि किसानों को न्याय मिल सके और घोटाले में शामिल लोगों को सजा मिल सके।