धमतरी (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित बिलाई माता (मां विंध्यवासिनी) का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और रहस्यमय किंवदंतियों का संगम है। यह मंदिर अपनी अद्भुत कहानी, वास्तुकला और बिल्लियों से जुड़ी अनोखी परंपराओं के कारण देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बना हुआ है। घने जंगलों के बीच धरती से स्वयंभू रूप में प्रकट हुईं मां विंध्यवासिनी को यहां बिलाई माता के नाम से जाना जाता है, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
500 साल पुरानी स्वयंभू मूर्ति और वास्तुशिल्प का सौंदर्य
बिलाई माता मंदिर को एक प्राचीन मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और अपनी सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थापित मां विंध्यवासिनी की मूर्ति है। लोकमान्यता के अनुसार, यह मूर्ति स्वयंभू है, यानी स्वयं धरती से प्रकट हुई है। भक्तों का विश्वास है कि मूर्ति धीरे-धीरे जमीन से ऊपर आई और आज भी इसे प्रकृति का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। मूर्ति का रंग काला है, और इसकी प्राचीनता लगभग 500 से 600 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
स्थापना से जुड़ी अनोखी कथा: बिल्लियों का रहस्य
मंदिर के नाम और इसकी स्थापना के पीछे एक दिलचस्प जनश्रुति जुड़ी हुई है। सदियों पहले, जिस स्थान पर यह मंदिर है, वहां एक घना और दुर्गम जंगल हुआ करता था। किंवदंती के अनुसार, उस समय के राजा जब इस क्षेत्र से गुजर रहे थे, तो उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा। एक विशेष पत्थर के पास कई जंगली बिल्लियां लगातार बैठी रहती थीं और उस स्थान से हटती नहीं थीं।
राजा ने इस रहस्य को समझने के लिए उस पत्थर को हटाने का प्रयास किया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह पत्थर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। राजा और उनके सैनिकों के प्रयास जारी थे, तभी अचानक उस स्थान से जल का प्रवाह शुरू हो गया। उसी रात देवी मां ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें संदेश दिया कि उस पत्थर को वहीं रहने दिया जाए और उसकी पूजा-अर्चना शुरू की जाए। इसके बाद राजा ने देवी की स्थापना करवाई और तभी से यहां नियमित पूजा का सिलसिला शुरू हो गया। चूंकि इस स्थान पर बिल्लियों की उपस्थिति विशेष थी और मूर्ति का रंग काला था, इसलिए स्थानीय लोग इसे प्रेम से “बिलाई माता” कहने लगे।
आस्था का केंद्र और मनोकामना पूर्ति का स्थान
बिलाई माता मंदिर भक्तों के लिए मनोकामना पूरी करने का एक प्रमुख स्थल है। लोक विश्वास है कि जो भक्त सच्चे मन से माता के दर्शन करते हैं, उनकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्राचीन काल में यहां नवरात्रि के दौरान बलि प्रथा भी प्रचलित थी, जिसमें 108 बकरों की बलि दी जाती थी, लेकिन समय के साथ यह प्रथा समाप्त हो गई है। अब भक्त यहां केवल प्रसाद और पूजन सामग्री अर्पित कर देवी की आराधना करते हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस दौरान ज्योति कलश जलाए जाते हैं, जो भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक होते हैं। हर साल देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां अपने नाम से ज्योति कलश प्रज्वलित करवाते हैं। पिछले वर्षों में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के नाम पर भी यहां ज्योत जलाए गए थे, जो इस मंदिर के बढ़ते राष्ट्रीय महत्व को दर्शाता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें
बिलाई माता मंदिर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित है। यह रायपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए रायपुर से बस और टैक्सी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालु रायपुर हवाई अड्डे से टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर पहुंच सकते हैं। बिलाई माता मंदिर छत्तीसगढ़ की धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा है, जो सदियों से भक्तों को शांति और विश्वास प्रदान कर रहा है।