दिल्ली में दिवाली! शायद, इस बार, पटाखों को मिलेगी ग्रीन पटाखों—but with a warning

ग्रीन पटाखों को मिली सशर्त आज़ादी! सुप्रीम कोर्ट का दिवाली से पहले बड़ा ऐलान

दिवाली की रौनक में फिर एक बार वही पुराना सवाल गूंज उठा है — क्या इस बार दिल्ली-एनसीआर में पटाखे फूटेंगे या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस पर सुनवाई करते हुए साफ कहा, “We may lift the ban, but with strict conditions.” यानी पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह हटेगा नहीं, बल्कि उसे नियंत्रित आज़ादी में बदला जा सकता है।यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि देश के सबसे प्रदूषित इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों की सांसों और संवेदनाओं का सवाल है। दिल्ली में दिवाली! शायद, इस बार, पटाखों को मिलेगी ग्रीन पटाखों—but with a warning.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों बारे में?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि “पूर्ण प्रतिबंध” (blanket ban) व्यावहारिक नहीं है। लेकिन uncontrolled इस्तेमाल से बचना जरूरी है। कोर्ट ने संकेत दिए कि दिवाली से पहले ‘ग्रीन पटाखों’ की सीमित अनुमति दी जा सकती है — पर सख्त निगरानी के साथ।

मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया —

“त्योहार की खुशी जरूरी है, पर हवा में ज़हर घोलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।”

कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे ग्रीन पटाखों (Green crackers) की पहचान, बिक्री और उपयोग पर स्पष्ट गाइडलाइन जारी करें। साथ ही, सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि पुराने, हानिकारक रासायनिक पटाखे किसी भी रूप में बाजार में न आएं।

क्यों आया फिर से पटाखों पर विवाद?

इसी वजह से पिछले कुछ वर्षों में अदालत ने पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। लेकिन इस बार उद्योग जगत और आम नागरिकों ने दलील दी —

“बच्चों की खुशियाँ और हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी इससे जुड़ी है।”

कोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह नकारा नहीं, लेकिन कहा कि “आर्थिक हित और पर्यावरण दोनों का संतुलन ज़रूरी है।

क्या होंगे नए नियम पटाखों को लेके ?

सूत्रों के मुताबिक, कोर्ट की अनुमति मिलने पर सरकार नीचे दिए गए बिंदुओं पर गाइडलाइन ला सकती है:

  • केवल ग्रीन पटाखे जिनमें बोरिक एसिड और बेरियम न हो।
  • 8 से 10 बजे रात तक ही पटाखे फोड़ने की अनुमति।
  • ऑनलाइन बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित।
  • लाइसेंसधारी दुकानों को ही बिक्री की अनुमति।
  • प्रत्येक उत्पाद पर QR कोड ताकि असली और नकली की पहचान हो सके।

यानी दिवाली की चमक अब “सीमित समय और स्वच्छ तकनीक” के बीच बंधी होगी।

दिल्ली के लोग क्या सोचते हैं?

राजधानी में राय बंटी हुई है।
एक ओर लोग कहते हैं —

“पटाखे फोड़ना हमारी परंपरा है, इसे रोकना त्योहार की आत्मा को रोकना है।”

वहीं दूसरी ओर, कई नागरिक पूछते हैं —

“एक रात की मस्ती के लिए हम अपने बच्चों की सांसें क्यों जोखिम में डालें?”

पर्यावरण कार्यकर्ता इसे “positive but fragile step” बता रहे हैं — यानी सही दिशा में कदम, पर अगर निगरानी कमजोर रही तो हालात फिर बेकाबू हो जाएंगे।

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