सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग और शैक्षणिक संस्थानों पर इसके प्रभाव के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने साफ कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) एक पूर्ण अधिकार (Absolute Right) नहीं है और इसके साथ उचित प्रतिबंध जुड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को निर्देश दिया है कि वह सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाली सामग्री के लिए ‘प्री-स्क्रीनिंग’ या जाँच की प्रक्रिया तैयार करने पर विचार करे।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
- अधिकार पर प्रतिबंध: सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि भारतीय संविधान के तहत प्रदान की गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है। खासकर जब यह शैक्षणिक माहौल, सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय हित को प्रभावित करे।
- शैक्षणिक संस्थाओं पर प्रभाव: कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि सोशल मीडिया पर अनियंत्रित सामग्री अक्सर विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के माहौल को दूषित करती है और छात्रों तथा शिक्षकों के बीच गलतफहमियां पैदा कर सकती है।
UGC को निर्देश
कोर्ट ने UGC को इस दिशा में कदम उठाने और एक मसौदा (Draft) तैयार करने का निर्देश दिया है:
- प्री-स्क्रीनिंग मॉडल: UGC यह देखे कि शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट या प्रचार सामग्री के लिए क्या कोई प्री-स्क्रीनिंग मॉडल लागू किया जा सकता है।
- दुरुपयोग पर नियंत्रण: इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा कि सोशल मीडिया का उपयोग शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए हो और दुर्भावनापूर्ण या भ्रामक सामग्री को रोका जा सके।
- जल्द रिपोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने UGC को जल्द से जल्द इस मामले में प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
यह फैसला सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और इसके कानूनी नियंत्रण की सीमाएं निर्धारित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।