दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: यमुना तटीकरण परियोजना के किसानों को मिली बड़ी राहत, मुआवजा राशि बढ़ाई गई

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना तटीकरण परियोजना (Yamuna Channelisation Project) के कारण अपनी ज़मीन गंवाने वाले सैकड़ों किसानों को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने लगभग 30 साल पहले अधिग्रहित की गई ज़मीन के लिए मुआवजा राशि बढ़ाने और किसानों को शेष राशि का ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया है।

यह ऐतिहासिक फैसला किलोकरी, खिजराबाद, नंगली राजापुर और गढ़ी मेंडू के सैकड़ों किसानों के लिए एक बड़ी जीत है। जस्टिस तारा वितस्ता गंजू की बेंच ने 26 सितंबर को यह फैसला सुनाया, जिसे सोमवार को आधिकारिक तौर पर जारी किया गया।

मुआवजे में बड़ी बढ़ोतरी

कोर्ट ने अपने फैसले में किसानों के लिए मुआवजे की राशि में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की है। पहले यह मुआवजा 89,600 रुपये प्रति बीघा निर्धारित था, जिसे अब बढ़ाकर 2 लाख रुपये प्रति बीघा कर दिया गया है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि बढ़ी हुई राशि का भुगतान किसानों को ब्याज सहित किया जाए।

30 साल लंबी न्याय की लड़ाई

यह मामला साल 1989 का है, जब “दिल्ली के नियोजित विकास” और यमुना के तटीकरण (बाढ़ नियंत्रण) के लिए अधिसूचना जारी कर जमीन अधिग्रहित की गई थी। इस परियोजना का संचालन दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा किया गया था, जिसके तहत यमुना किनारे बसे 15 गांवों की करीब 3,500 हेक्टेयर जमीन ली गई थी।

ग्रामीणों ने तर्क दिया था कि उनकी ज़मीन का मूल्यांकन बहुत कम किया गया था। भूमि अधिग्रहण कलेक्टर (LAC) ने 1992 में मुआवजा केवल 27,344 रुपये प्रति बीघा तय किया था। इसके खिलाफ किसानों ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। साल 2006 में ट्रायल कोर्ट ने मुआवजा 27,344 रुपये से बढ़ाकर 89,600 रुपये प्रति बीघा किया था। ग्रामीणों ने इससे असंतुष्ट होकर हाई कोर्ट में 140 से अधिक अपीलें दाखिल की थीं, जिस पर अब यह अंतिम फैसला आया है।

किसानों ने तर्क दिया था कि उनकी ज़मीन का मूल्यांकन पास के विकसित इलाकों जैसे बहलोलपुर खादर और जसोला की तरह किया जाना चाहिए, जहां उन्हें क्रमशः 2.5 लाख रुपये प्रति बीघा और 4,948 रुपये प्रति वर्ग गज का मुआवजा मिला था। हालांकि, DDA और केंद्र सरकार ने यह कहते हुए इसका विरोध किया था कि अधिग्रहित ज़मीन “सैलाबी” (बाढ़ प्रभावित) थी, जिसका उपयोग न खेती के लिए किया जा सकता था और न ही निर्माण के लिए।

हाई कोर्ट का यह फैसला उन सैकड़ों किसानों के आर्थिक हितों की रक्षा करेगा, जिन्होंने दशकों से न्याय के लिए संघर्ष किया है।

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