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कोरिया में अफसरशाही की नापाक चाल, अतिक्रमण हटाने के बजाय संरक्षण का खेल

कोरिया जिले में अफसरशाही की लापरवाही से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया रुकी हुई है। जानें पूरी कहानी और राजनीतिक दबाव की भूमिका।

कोरिया में अफसरशाही की नापाक चाल: अतिक्रमण हटाने के बजाय संरक्षण का खेल

कोरिया, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं, जहां एक ओर राज्य सरकार नहर, तालाब और नदी के अतिक्रमण को हटाने के लिए बुलडोजर कार्यवाही में जुटी है, वहीं कुछ अफसर इस अतिक्रमण को हटाने के बजाय उसे संरक्षण देने में लगे हैं।

मामला क्या है?
यह मामला सरगुजा संभाग के कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर के पास स्थित सिल्फोडा जलाशय से जुड़ा हुआ है, जहां 6 जून 2023 को तत्कालीन कांग्रेस विधायक की मदद से कुछ लोगों ने रातोंरात नहर की जमीन पर कब्जा कर दीवार बना दी और मूर्ति स्थापित कर दी। इस अतिक्रमण की जानकारी पहले ही एक किसान ने जिला प्रशासन को दी थी, लेकिन प्रशासन ने इसे नजरअंदाज कर दिया।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और तहसीलदार की कार्रवाई
इस मामले में उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और तहसीलदार को आदेश दिया कि अतिक्रमण को हटाया जाए और दोषियों पर जुर्माना लगाया जाए। तहसीलदार ने 24 जून को अतिक्रमण करने वालों पर 2 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, लेकिन अतिक्रमण हटाने की कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद SDM बैकुंठपुर ने अतिक्रमण हटाने के आदेश को रोकने की अपील की, और यह मामला फिर से उच्च न्यायालय में पहुंच गया।

कोर्ट की फटकार और प्रशासन की लापरवाही
उच्च न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाते हुए प्रशासन को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था। लेकिन तीन महीने से ज्यादा समय गुजर जाने के बावजूद प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया।

कमिश्नर का स्थगन आदेश और राजनीति
इस मामले को और लटकाने के लिए सरगुजा कमिश्नर ने गलत तथ्यों के आधार पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। कमिश्नर ने यह आदेश ऐसे वक्त में जारी किया जब किसान को ही इस आदेश में पक्षकार बना दिया गया। अंदरखाने से यह बात सामने आई है कि पिछले दो सालों से कोरिया जिला प्रशासन वोट बैंक की राजनीति में कुछ बड़े नेताओं को खुश करने के लिए जानबूझकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई लंबित कर रहा है।

निष्कर्ष
यह पूरा मामला यह दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ में अफसरशाही और प्रशासन किस तरह से अपने स्वार्थ के लिए अतिक्रमण के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को टालने में लगी है। उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद, प्रशासन की लापरवाही और राजनीतिक दबाव की वजह से यह मामला लंबित पड़ा हुआ है, जिससे साफ दिखता है कि किसी भी दिशा में बदलाव की उम्मीद अभी दूर है।

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