75 दिन चले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का भव्य समापन, मावली माता की डोली को दी गई पारंपरिक विदाई

जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व, जो अपनी 75 दिनों की अनूठी अवधि के लिए जाना जाता है, आज पारंपरिक विधि-विधान के साथ संपन्न हो गया। इस महान लोकोत्सव के अंतिम चरण में मावली माता की डोली (पालकी) की विदाई का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें शामिल होने के लिए हजारों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।

यह धार्मिक रस्म शहर के गीदम रोड स्थित जिया डेरा मंदिर में पूरी की गई। इस अवसर पर मावली माता की पूजा-अर्चना माटी पुजारी और बस्तर राजपरिवार के सदस्य राजकुमार कमलचंद भंजदेव की उपस्थिति में संपन्न हुई।

गौरवशाली परंपरा का निर्वहन

पारंपरिक वेशभूषा में सजे स्थानीय ग्रामीण गाजे-बाजे और ढोल-नगाड़ों की थाप पर माता की डोली को विदा करने के लिए एकत्रित हुए। शहर में निकाली गई विशाल कलश यात्रा ने पूरे जगदलपुर के माहौल को भक्तिमय बना दिया।

यह विदाई रस्म बस्तर की सांस्कृतिक अस्मिता और विरासत का एक अनूठा प्रतीक है। परंपरा के अनुसार, मावली माता की डोली को विदा करने से पहले बंदूक की सलामी दी गई, और पूरे क्षेत्र में माता के जयकारों की गूंज सुनाई दी। श्रद्धालुओं की आंखों में माता की विदाई की नमी और गहरी भक्ति का भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।

राजा अन्नम देव की परंपरा

बताया जाता है कि कालांतर में बस्तर के राजा अन्नम देव स्वयं राजमहल से लगभग तीन किलोमीटर पैदल चलकर माता की डोली को विदा करने आते थे। आज भी राजपरिवार के सदस्यों द्वारा इस गौरवशाली परंपरा का निर्वहन किया जाता है, जो बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है।

डोली को विधिवत दंतेवाड़ा के लिए रवाना किया गया। इससे पहले ‘मावली परघाव’ की रस्म के दौरान माता की डोली को चार दिनों तक माई दंतेश्वरी मंदिर परिसर में रखा गया था, जहां लाखों भक्तों ने दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मावली माता की इस डोली विदाई के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाला यह लोकोत्सव संपन्न हो गया, जिसने एक बार फिर बस्तर की गहरी आस्था और जनसहभागिता की अद्भुत झलक पूरे देश को दिखाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *